बैशाख चतुर्थी संपूर्ण व्रत विधि 🙏🙏🙏🙏🙏
🙏 श्री गणेशाय नमः🙏
बैशाख बड़ी चतुर्थी
🙏🙏🙏🙏🙏
बैशाख चतुर्थी व्रत विधि 19
अप्रैल 2022 मंगलवार को हैं,
आज वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी है, जिसे विकट संकष्टी चतुर्थी कहते हैं. इस दिन विघ्नहर्ता श्री गणेश जी की पूजा विधिपूर्वक करते हैं. उनकी कृपा से सुख, सौभाग्य, शुभता, बुद्धि, धन, दौलत आदि में वृद्धि होती है!! उनके आशीर्वाद से तो बिगड़े काम भी बन जाते हैं और संकट दूर हो जाते हैं!!
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व्रत पूजा विधि,
19 अप्रैल 2022 मंगलवार को हैं,
बैशाख चौथ व्रत
पूजा सामग्री -
हल्दी , कुमकुम , मेहँदी , अक्षत, मोली , घी का दीपक , चूरमा के लड्डू, काजल ,नारियल, गुड़,गेहूं की मुट्ठी,फुल
माताजी की चुंदड़ी , जोत
लेना, दूब, जल का कलश
आदि ....
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चौथ माता पूजा विधि -
चौकी पर विनायक चौथ माता
की स्थापना कर चौथ माता
के रोली , काजल , मेहँदी, हल्दी की टिकी लगाये ,
विधि पूर्वक पूजन कर ज्योत
के दर्शन कर चौथ माता ,
बिन्दायक जी की कहानी
सुने, उसके बाद चन्द्रमा के दर्शन कर अर्ध्य देकर भोजन
करे!!
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बैशाख चौथ व्रत की कहानी-
एक नगर में एक साहूकार
रहते थे ,उनके एक बेटा व बहूँ
थे , बहु बरतन साफ कर पानी डालने नीचे जाती तो
पडौसन पूछती आज काय खायो , तो वह कहती -ठंडो बासी ,
एक दिन जब वह बरतन साफ कर पानी फेकने गई तो
रोजाना की तरह पडौसन ने
पूछा आज क्या जीमा, तो वो बोली ठंडो-बासी उस दिन
साहुकार के बेटे ने उसकी बात
सुन ली और मन ही मन
सोचने लगा , अभी तो यह
गरम भोजन करके आई हैं,
फिर ये पडौसन को ठंडा बासी क्यों बता रही हैं,
दुसरे दिन उसने अपनी माँ से
कहा मां पकवान बनाओ मेहमान आ रहे हैं, मां ने
खीर पुड़ी का भोजन
बनाया, मां ने पूछा बेटा
मेहमान कब आएंगे तो बेटे ने
कहा मां अपन ही मेहमान है
थाली परोसो,
माँ व बेटा बहूँ ने साथ बैठ
प्रसन्नता से भोजन
किया ,बहूँ बरतन साफ कर
पानी डालने नीचे गई तो पीछे
– पीछे उसका पति भी गया , आज भी हमेशा की तरह
पडौसन ने पूछा , आज क्या जीमा तो उसका वही रोज
वाला जवाब “ “ ठंडा बासी,
उसके पति को बहुत गुस्सा
आया रात होने का इंतजार
करने लगा जब रात्रि में पत्नी
कमरे में आई हाथ पकडकर
बोला मेरे सामने खीर पुड़ी का भोजन करके आई हैं फिर
पडौसन को बासी भोजन
क्यों बताया ,तब वह मुस्कुरा
कर बोली की यह बड़े - बूढ़ो
की कमाई हैं , यह धन
ना आपने कमाया ना आपके
पिताजी ने , जिस दिन आप कमाओगे उस दिन ताजा भोजन होगा,यह सुनकर साहुकार के बेटे ने
परदेश जाने का विचार
किया, सुबह उठ कर माँ से
बोला , माँ मैं कमाने के लिये
परदेश जाऊंगा ,माँ ने कहा
अपने पास बहुत धन हैं , तुझे
परदेश जाने की क्या
आवश्यकता हैं , लेकिन वह
नहीं माना और माँ की आज्ञा
लेकर वह कमाने के लिए
परदेश चला गया , और बोल कर गया की जब तक में नहीं आऊं तब तक दिया और चूल्हा दोनों की आग नहीं
बूछनी चाहिए ,
उसको एक सेठ के यहाँ
नौकरी मिल गई , कुछ समय
में ही उसने सारा काम काज
सभाल लिया सेठ का विश्वास पात्र बन गया , सेठ अपना सारा कारोबार उसे सौपकर तीर्थ यात्रा पर चला गया ,
अब एक दिन चूल्हे की आग
बुझ गई , बहु पडौसन के घर
अग्नि लेने गई | उसने देखा की पडौस की ओरते बैसाख
की चौथ माता की पूजा कर
रही थी , उसने पूछा आप यह
किस माता का पूजन कर रही
हैं और इस पूजा को करने से
क्या फल मिलता है ,तब
पडौसन ने कहा यह चौथ
माता का व्रत हैं इस व्रत को
करने से स्त्रियों को अखंड
सौभाग्य , उत्तम रूप , सुख़ ,
गुणवान सन्तान तथा बिछड़े
का मिलन होता हैं , तब उसने
बताया मेरे पति परदेश गये हैं
मैं भी चौथ माता का व्रत करना चाहती हूँ पर मेरी सास
मुझे घर से बाहर नहीं आने
देती तो मुझे कैसे मालूम
चलेगा की चौथ का व्रत कब
है तब पडौसन ने कहा बहूँ
तु रोजाना एक टिपकी दीवाल पर लगा दिजे,
जब तीस टिपकी हो जाये
उस दिन चौथ माता का व्रत
रख लेना और शाम को चौथ
बिन्दायक जी का पूजन कर
चन्द्रमा को अर्ध्य देकर फिर
जीम लेना ,बहु
चौथ के दिन दमड़ी का घी और गुड़ लाकर महल में चोथ मांडकर पूजा करती और रात
को चंद्रमा जी को अरक देकर
जिमति, उसकी सास चार टाइम रोटी देती ,चौथ के दिन
एक टाइम पनिहारी को देती, एक टाइम पाड़ा को देती, एक टाइम झाठावाड़ा में गड्डा
खोदकर रख देती ,और चौथे
टाइम की महल में लाकर
जिम लेती,
साहूकार की बहूँ को पडौसन के कहे अनुसार
व्रत करते बहुत समय बीत
गया ,
चौथ माता ने सौचा की यदि इसकी नहीं सुनी तो मुझे मानेगा कौन , तब चौथ माता
ने साहूकार के बेटे को स्वप्न
में जाकर कहा कि साहूकार का बेटा सो रहा हैं या जग रहा
हैं , तो उसने कहा ना सो रहा
हूँ ना जग रहा हूँ चिंता में हूँ , इस पर चौथ माता ने कहा चिंता छोड़ और घर जाकर
तेरे परिवार को सम्भाल तेरी
घरवाली तेरा रास्ता देख रही
है , तब साहूकार के बेटे ने
कहाँ मेरा कारोबार बहुत
फैला हैं ,तब चौथ माता बोली
सुबह उठकर स्नान ध्यान से
निर्वत हो दुकान जाकर चौथ माता का नाम लेकर घी का
दीपक जलाकर बैठ जाना , जिसको लेना हैं ले जायेगा , जिसको देना हैं दे जायेगा , सुबह उसने वैसा ही किया
और देखते ही देखते हिसाब
हो गया लेने वाले ले गए और
देने वाले दे गए और उसने
घर जाने की तैयारी कर
ली ,घर रवाना हुआ तो रास्ते
में एक सापं अपनी सौ वर्ष की
आयु पूर्ण करने दाह समाधि
लेने जा रहा था उसने उसको
सिसकार दिया , साँप ने गुस्से
में कहाँ मैं अपनी आयु पूर्ण
करके मुक्ति पाने जा रहा था
तूने पूझे टोक दिया इसलिये
अब मैं तुझे डसुंगा ,
इस पर साहूकार के बेटे ने
कहा मैं बारह वर्ष बाद अपने
घर जा रहा हूँ में अपनी माँ व
पत्नी से मिल लूँ तब डस
लेना , तब वहां सर्प बोला कि
तू घर जाकर मुझे भूल
जाएगा तब साहुकार के बेटे ने कहा मैं अपनी पत्नी की
चोटी लटका दूंगा ,उस पर
चढकर आ जाना ,डस लेना ,
तब वो सर्प बोला कि मुझे बचन दे, उसने बोला वाचा
वाचा ब्रहमा वाचा वाच, चुकू ऊबो सुकू, झूठ बोलूं तो धोबी
के नरक कुंड में जाकर पडू,
उसने वचन दिया,
अब वो घर पहुँचा तो उदास बैठा कुछ
बोला नहीं , तब घरवाली बोली ईतने दिन में आए हो
फिर भी कुछ बोल नहीं रहे हो,
तब साहूकार का बेटा बोला
कि मे अब कुछ ही दिनों का
मेहमान हूं मैं बेरी दुश्मन को
सही देकर आया हूं वह मुझे
डसेगा,
लेकिन उसकी औरत
होशियार थी , सब बात पता
करके अपनी मदाम की
सात पेडी धोई और पहली
पेडी पर बालू रेत बिछाई
दूसरी पेडी पर अंतर अवीर
तीसरी पर फूल गुलाल चौथी
पेडी पर कंकू केसर पांचवी पेड़ी पर लड्डू पेड़ा छठी पेडी पर गादी गलीचा सातवी
पेडी पर दूध का कटोरा
इस प्रकार सातों पेडी सजा
दी चौथ माता से प्रार्थना की
हे चौथ माता मेरे पति के
प्राणों की रक्षा करना , आधी
रात्रि में साँप आया और पहले तो बालू रेत में लोटा और बोला कि साहूकार के बेटे की
बहू ने सुख तो दिया पर वचन
का बाधा आया डसुगा तो
सही ,दूसरी पेडी पर अंतर अबीर में लोटा और बोला
साहूकार से बेटे की बहू ने
सुख तो बहुत दिया पर वचन
का बाधा आया डसूंगा तो
सहीं तीसरी पेडी पर फूल
गुलाल पर लोटा और बोला
कि साहूकार का बेटा की बहू
ने सुख तो दियो पर वचन का बांधा आया डसूंगा तो
सही चौथी पीढ़ी पर कंकू केसर लगाया और बोला कि
साहूकार का बेटा की बहू
सुख तो दिया पर डसूंगा तो
सही पांचवीं पेडी पर लड्डू
पेड़ा जीमा और बोला साहूकार का बेटा की बहू ने
सुख तो दिया पर डसूंगा तो सही छठी तेरी पर गादी गलीचा पर खूब लोटा और
बोला कि साहूकार का बेटा की बहू
ने आराम तो दिया पर डसूंगा तो सही सातवी पेडी पर दूध का कटोरा पिया और
बोला साहूकार का बेटा की
बहु ने सुख तो दिया पर डसूंगा तो सही ,
तब चौथ माता, बिन्दायक जी और चंद्रमाजी ने सोचा अपन
को इसकी रक्षा तो करनी
चाहिए, नही तो कोन अपने को मानेगा,
तब चौथ माता तलवार बनी,
बिन्दायक जी ढाल बने और
चंद्रमाजी ने उजाला किया,
साँप के टुकड़े कर दीए और ढाल से ढक दिया,
सांप को मरा हुआ देखकर
साहूकार की बहू नेअपने पति से बोली चलो अपन चौपड़
पासा खेलते हैं अपना बेरी
दुश्मन तो मर गया है,
साहूकार के बेटे को नींद नहीं
आ रही थी ,वह अपनी पत्नी के साथ चौपड – पांसा खेलने लगे ,सुबह देर तक जब भाई भाभी नही उठे तो बहन जगाने गई तो सीढियों पर खून ही खून देखकर जोर – जोर से रोने लगी की मेरे भाई को किसी ने मार दिया , रोने
की आवाज से भाई भाभी उठे
और बोले बाईजी
हमारा बेरी दुश्मन मरा हैं , यहाँ सफाई करवाओ गाजे
बाजे से हमे सामें लो तब हम
बाहर आयेंगे ,माँ ने वहाँ
सफाई करवाई ,बेटा बहु नीचे
आये , बेटे ने पूछा मेरे पीछे से
किसी ने कोई धर्म पुण्य किया
क्या तो बहूँ ने हामी भरी तब
सास बोली तू चार समय
खाना खाती थी तूने क्या पुण्य
किया , तब बहूँ बोली “ मैं
चौथ बिन्दायक जी का व्रत करती थी , चौथ के दिन एक
समय का
खाना पानी वाली को देती , दूसरी बार का गाय के बछड़े को , तीसरी बार का जमीन में
गाड़ देती व चौथी बार का
चाँद को अर्ध्य देकर स्वयं खा
लेती ,मैंने बनिये की दुकान से
पूजा का सामान मंगवाया
उनसे पूछ लो,सास ने पानी वाली से पूछा तो उसने कहा
महीने की हर चौथ को मुझे
खाना देती थी , बछड़े के मुह से फूल गिरने लगे , जमीन में
खोदा तो सोने के चक्र मिले ,
बनिये से पूछा तो उसने
बोला महीने में एक बार दमड़ी
का घी और गुड़ ले जाती थी,
कर यह सुनकर सास बहू के पांव पड़ने लगी तो बहू बोली सासू जी मैं आपके पांव पड़ती हु आप चौथ माता के पाव पड़ो,
फिर बहु ने कहा अब बैशाख
की चौथ का उद्यापन करना हैं,
सास बहूँ ने चौथ माता का उद्यापन धूम – धाम से किया , और सारी नगरी में कहलवा दिया की सब कोई चौथ माता का व्रत करना साल की सब चौथ करना , नहीं तो चार करना , चार नहीं तो दो चौथ माता के व्रत तो अवश्य ही करना चाहिये ,
हे चौथ माता उस पर प्रसन्न
हुई वैसी सब पर होना और
सबकी मनोकामना पूर्ण
करना , अमर सुहाग देना
चौथ माता जैसे बहू को टूट्या
वैसे सबको टूटजो कहता
सुनता हूंकारा भरना,
अधुरी होय तो पूरी करना
पूरी हुई तो मान करना 🙏
गणेश जी महाराज की जय, बोलो चौथ माता की जय 🙏
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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विनायक जी की कहानी -🙏
एक समय की बात है एक भाई
बहन रहते थे,बहन का
नियम था कि वह अपने भाई
का चेहरा देखकर ही खाना
खाती थी, हर रोज वह सुबह
उठती थी और जल्दी-जल्दी
सारा काम करके अपने भाई
का मुंह देखने के लिए उसके
घर जाती थी, एक दिन रास्ते
में एक पीपल के नीचे गणेश जी की मूर्ति रखी थी, उसने भगवान के सामने हाथ
जोड़कर कहती कि मेरे जैसा
अमर सुहाग और मेरे जैसा
अमर पीहर सबको दीजिए, यह कहकर वह आगे बढ़
जाती थी,जंगल के झाड़ियों
के कांटे उसके पैरों में चुभा
करते जाते थे,
एक दिन भाई के घर पहुंची और भाई का मुंह देख कर बैठ गई, तो भाभी ने पूछा पैरों में क्या हो गया हैं। यह सुनकर उसने भाभी को जवाब दिया कि रास्ते में जंगल के झाड़ियों के गिरे हुए कांटे पांव में चुप गए हैं। जब वह वापस अपने घर गई तब भाभी ने अपने पति से कहा कि रास्ते को साफ करवा दो, आपकी बहन के पांव में बहुत सारे कांटा चुभ गए हैं। भाई ने तब कुल्हाड़ी लेकर सारी झाड़ियों को काटकर रास्ता साफ कर दिया। जिससे गणेश जी का स्थान भी वहां से हट गया, यह देखकर भगवान गुस्सा हो गए और उसके भाई के प्राण हर लिए, जब
लोग अंतिम संस्कार के लिए भाई को ले जा रहे थे, तब उसकी भाभी ने रोते हुए लोगों से कहीं थोड़ी देर रुक जाओ, उनकी बहन आने वाली है। वह अपने भाई का मुंह देखे बिना नहीं रह सकती है। उसका यह नियम है वह भाई का मुंह देखकर ही भोजन करती है तब लोगों ने कहा आज तो देख लेगी पर कल कैसे देखेगी। रोज दिन की तरह बहन अपने भाई का मुंह देखने के लिए जंगल में निकली। तब जंगल में उसने देखा कि सारा रास्ता साफ किया हुआ है। जब वह आगे बढ़ी तो उसने देखा कि सिद्धिविनायक को भी वहां से हटा दिया गया हैं,
उसने वहां मिट्टी से गणेश जी की मूर्ति बनाई और बोली कि हे भगवान मुझे अमर सुहाग और अमर पियर वासा
देना ऐसा कहकर वह आगे
बढ़ी तो विनायक जी ने विचार किया कि अपन इसको नहीं टूटेंगे तो दुनिया में अपने को कौन मानेगा तब विनायक जी ने उसको आवाज लगाई
और बोले कि बाई
यह साथ नीम के पत्ते ले जा
तेरे भाई को कच्चे घोलकर
पिला देना तेरा भाई उठ कर
खड़ा हो जाएगा ऐसा कहकर
विनायक जी वहां से चंपत हो
गए बहन सात पत्ती लेकर
घर आई वहां देखा तो भौजाई रो रही है लोग बैठे हैं, भाई मरा हुआ पड़ा है वह झटपट उठी और अन्दर गई दूध की चरी लेकर और पत्ती घोल कर भाई को छीटे दिए भाई उठ
कर बैठ गया बहन से बोला
कि मुझे बहुत नींद आई तब
वह बहन बोली कि ऐसी नींद तेरे बेरी दुश्मन को आवे अब
भाई बहन दोनों बात करने लगे बहन बोली कि भाई तुम्हें रास्ता साफ करने का किसने कहा था भाई बोला कि तुम्हारी भोजाई ने कहा था, उसने बोला कि भाई ऐसे किसी का कहना नहीं मानना चाहिए, विनायक जी महाराज उस भाई बहन को टूटे ऐसा सबको टूटजो कहता सुनता हुंकारा
भर जो अधूरी हुई तो पूरी
कर जो पूरी होय तो मान करजो !!
बोलो गणेशजी महाराज की
जय 🙏🙏
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आड़ी बाड़ी 🙏
सब कहानी के पीछे बोलना-
आड़ी बाड़ी सोना की बाड़ी, जीमें बैठी कान कुंवाडी,
कान कुंवारी कई मांगे, छत्तीस
करोड़ देवता की ,
बाड़ी सियाजी काई होए, अन्न होय,धन हो ,लाज
लक्ष्मी हो,
बिछड़े का मेल हो नीपुत्र को
पुत्र हो,
सांसु को पुरसन बहू को
जीमन उठ भई तपसी जिम
भाई लपसी , लपसी भाई का
थान ,भोजाई को मान,
थाने थारी वार्ता को फल,
मांने मारा वरत को फल!!
🙏🙏🙏🙏🙏
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चंद्रमा जी को
अर्ध्य देते समय बोले -
चन्दा हेलो उगीयो , हरिया बाँस कटाय , साजन उबा बारने , आखा पाती लाय ,
कई केरो दिवालो काय केरी
बात ,
सोना केरो दिवलो रूपा
केरी बात,
कौन सजाए दिवलों कौन
सजाई बात,
मैं पनौती संजोई दिवलों में
पनोती संजोई बात,
पीलो ओडियो आपके ,मीठो
जीमे बाद के,
वैशाख चौथ का चांद देखता
जियो वीर भरतार,
चौथ का चन्द्रमा के अर्ध्य देता , जीवों म्हारा बीर भरतार !!
चंद्रमा जी की जय
🙏🙏🙏🙏🙏
Bhut khoob
ReplyDelete🙏जय गणेश🙏
ReplyDeletechoouth mata ki jai ho...
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